1. हाँ! मैं इस दुनिया का/ सबसे नाकाम प्रेमी हूँ!
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जो अंत तक
नहीं कर सका/ तुम्हारे दोनों हाथों में अंतर!
और न ही/ पार कर सका/ तुम्हारे आँखों का समंदर!
क्योंकि तुम्हारी आँखें/ मुझे हमेशा
किसी कराहते कांच सी लगीं
जिन्हें किसी नरम दिल में/ बेवजह
धंसने और विलगने की प्रक्रिया से
गुजार दिया गया था!
असल में/ मुझे तुममें/ प्रेमिका कम
मां ज्यादा नजर आती रही!
शायद/ तभी मैं
तुम्हारे चले जाने के बाद भी
तुम्हे खोना नहीं चाहता!
मैंने हर उस याद को/ भींच रखा है!
जो मेरी स्मृतियों में ठहर सकी
शायद! इसलिए ही मैंने
तुम्हारे आने से पहले/ और जाने के बाद तक
तुम्हारा इन्तजार किया!
यह मेरी नाकामी है/ कि मैंने तुम्हे
हवा नहीं नदी समझा!
और भूल गया
कि जब भी हवा पहाड़ों से टकराती है
बारिशें होती है!
जिसे अक्सर/ नदियों में ही मिल जाना होता है!
पर उसे पहाड़ कभी साबित नहीं कर पाता!
आखिर में बचता है/ एक नाकाम प्रेमी!
और उसकी स्मृतियों में उसकी प्रेमिका!
जो चेहरे से बिलकुल मेरी मां जैसी है!
पर आदतों में मुझ सी!
◽अमृत सागर
2. कवि की रसोई
(is kavita ke kavi ka nam mere pas uplabdh nahi hai.)
ज़रा आराम से बाहर बैठो
मेरे प्यारे श्रोता-पाठक
इधर मत तांको-झांको
आनंद लो खुश्बुओं का
आने वाले जायके का
मेरी कविता की कड़वाहट का
कुछ हासिल नहीं होगा तुम्हें
इधर आकर देखने से
बहुत बेतरतीबी है यहां
कोई चीज़ ठिकाने पर नहीं
सुना आज का अखबार पढ़कर
जो डबाडबा आये थे आंसू
उन्हें मैंने प्याले में जमा कर लिया था
पहले प्रेम के आंसू
बरसों से सिरके वाली बरनी में सुरक्षित हैं
किसानों के आंसुओं की नमी
मेरे लहू में है
भूख-बेरोजगारी से त्रस्त
युवाओं की बदहवासी
मेरे भीतर अग्नि-सी धधकती रहती है
जिंदगी के कई इम्तहानों में नाकाम
खुदकुशी करने वालों की आहें
मेरी त्वचा में है चिकनाई की तरह
विलुप्त होते जा रहे
वन्यजीवों के रंग मेरी स्याही में
जंगल और पहाड़ों के गर्भ में छुपे
खनिजों की गर्मी है मेरी आत्मा में
और इन पर जो गड़ाये बैठे हैं नजरें
पूंजी के रक्त-पिपासु सौदागर
उन पर मेरी कविता की नज़र है लगातार
अभावग्रस्त लोगों की उम्मीदों के
अक्षत हैं मेरे कोठार में
हिमशिखरों से बहता मनुष्यता का
जल है मेरे पास दूध जैसा
प्रेम की शर्करा है
कभी न खत्म होने वाली
दु:ख, दर्द और तकलीफों के मसाले हैं
चुनौतियों का सिलबट्टा है
कड़छुल जैसी कलम है
हौंसलों के मर्तबान हैं
कामनाओं का खमीर है मेरे पास
अब बताओ
तुम क्या पसंद करोगे ?
10.01.2015
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जो अंत तक
नहीं कर सका/ तुम्हारे दोनों हाथों में अंतर!
और न ही/ पार कर सका/ तुम्हारे आँखों का समंदर!
क्योंकि तुम्हारी आँखें/ मुझे हमेशा
किसी कराहते कांच सी लगीं
जिन्हें किसी नरम दिल में/ बेवजह
धंसने और विलगने की प्रक्रिया से
गुजार दिया गया था!
असल में/ मुझे तुममें/ प्रेमिका कम
मां ज्यादा नजर आती रही!
शायद/ तभी मैं
तुम्हारे चले जाने के बाद भी
तुम्हे खोना नहीं चाहता!
मैंने हर उस याद को/ भींच रखा है!
जो मेरी स्मृतियों में ठहर सकी
शायद! इसलिए ही मैंने
तुम्हारे आने से पहले/ और जाने के बाद तक
तुम्हारा इन्तजार किया!
यह मेरी नाकामी है/ कि मैंने तुम्हे
हवा नहीं नदी समझा!
और भूल गया
कि जब भी हवा पहाड़ों से टकराती है
बारिशें होती है!
जिसे अक्सर/ नदियों में ही मिल जाना होता है!
पर उसे पहाड़ कभी साबित नहीं कर पाता!
आखिर में बचता है/ एक नाकाम प्रेमी!
और उसकी स्मृतियों में उसकी प्रेमिका!
जो चेहरे से बिलकुल मेरी मां जैसी है!
पर आदतों में मुझ सी!
◽अमृत सागर
2. कवि की रसोई
(is kavita ke kavi ka nam mere pas uplabdh nahi hai.)
ज़रा आराम से बाहर बैठो
मेरे प्यारे श्रोता-पाठक
इधर मत तांको-झांको
आनंद लो खुश्बुओं का
आने वाले जायके का
मेरी कविता की कड़वाहट का
कुछ हासिल नहीं होगा तुम्हें
इधर आकर देखने से
बहुत बेतरतीबी है यहां
कोई चीज़ ठिकाने पर नहीं
सुना आज का अखबार पढ़कर
जो डबाडबा आये थे आंसू
उन्हें मैंने प्याले में जमा कर लिया था
पहले प्रेम के आंसू
बरसों से सिरके वाली बरनी में सुरक्षित हैं
किसानों के आंसुओं की नमी
मेरे लहू में है
भूख-बेरोजगारी से त्रस्त
युवाओं की बदहवासी
मेरे भीतर अग्नि-सी धधकती रहती है
जिंदगी के कई इम्तहानों में नाकाम
खुदकुशी करने वालों की आहें
मेरी त्वचा में है चिकनाई की तरह
विलुप्त होते जा रहे
वन्यजीवों के रंग मेरी स्याही में
जंगल और पहाड़ों के गर्भ में छुपे
खनिजों की गर्मी है मेरी आत्मा में
और इन पर जो गड़ाये बैठे हैं नजरें
पूंजी के रक्त-पिपासु सौदागर
उन पर मेरी कविता की नज़र है लगातार
अभावग्रस्त लोगों की उम्मीदों के
अक्षत हैं मेरे कोठार में
हिमशिखरों से बहता मनुष्यता का
जल है मेरे पास दूध जैसा
प्रेम की शर्करा है
कभी न खत्म होने वाली
दु:ख, दर्द और तकलीफों के मसाले हैं
चुनौतियों का सिलबट्टा है
कड़छुल जैसी कलम है
हौंसलों के मर्तबान हैं
कामनाओं का खमीर है मेरे पास
अब बताओ
तुम क्या पसंद करोगे ?
10.01.2015
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