मित्रो आज आपके बीच अपने समूह के
एक और साथी की पाँच कविताएँ पोस्ट कर रहा हूँ और उन पर टिप्पणी भी....आप बेबाकी से
किन्तु शालीनता से अपनी बात रखे...कविता
और टिप्पणी दोनों की खामियों को उजागर करे
और अच्छी लगे तो वह भी कहे...आप टिप्पणी अपने मन माफिक करने के लिए स्वतंत्र है...इस पोस्ट के बीच दूसरी पोस्ट न डाले...
कविताएँ
१.निराशा
निराशा,
नहीं है आशा का नहीं होना,
यह तो आशा का होना ही है
जब आशा की मांग और पुरज़ोर हो जाया करती है
जैसे प्रेमिका का नहीं होना प्रेमिका का नहीं होना नहीं है,
बस प्रेमिका के होने की घनीभूत मांग है एक,
निराशा है मोमबत्ती एक अंधेरी रात की
धीरे धीरे जलती पिघलती है,
बिजली आने के इंतजार में जैसे/
अक्सर होता है
बत्ती खत्म होने से ठीक पहले आती है बिजली,
पूरी कालोनी, कालोनी जगमगाने से पहले ही खुश हो जाती है
उजाला होना तो दूसरा चरण है
बाद का चरण है
बिजली आने के बाद का
बत्ती के जल जाने से पहले का,
सुकून है निराशा असल में
ठंडापन है दिल का,
बत्ती बुझने से पहले का प्रयास है
अंधेरे में रह नहीं सकते हम
तभी
अगर बत्ती खत्म हो, बिजली आने से पहले कभी किसी रात
एक और जला लेते हैं मोमबत्ती
फिर मोम पिघलता है
शनैः शनैः
बिजली आने के इंतजार में.
२. तीसरे पहर का सपना
रात के तीसरे पहर
जब किसी अन्तःपुर में नृत्य क्र रही होती हैं मत्स्यपरियां
और जब अधजगे स्वप्न तोड़ देते हैं गहरी नींद की श्रृंखला
संगीत की उतान धुन
धीरे से उतर जाती है स्वर लहरी पर
ठण्ड से काँप जाता है पूरा शहर
रात के ठीक उसी पहर उतरते हैं देवदूत
अधजगी नींद तोड़
खटका देते हैं दरवाज़े के सांकल
(न जाने क्या लेने आये हों!)
चौंककर वह उठ बैठता है-
उसे अपनी नहीं
दूसरों की मृत्यु का भय है!
३. दो
मन के दो हिस्सों में से
एक पर रख दो
नरम पूजा के फूल
तरतीब से सजा दो उन्हें
दूसरे पर बचा हुआ हिस्सा
गाढ़ा, काला-नीला
कांटेदार दर्दनाक
चीखता हुआ हिस्सा
फिर मन के इन दो हिस्सों को
अदल बदल दो
या जरा सा इसमें
और जरा सा उसमें मिश्रण कर दो
जैसे एक हाथ में रखे चावल के दाने उठा कर रख देते हैं
दूसरे हाथ में रखे चावल के दानों के साथ
मन, तब मन-सा बना रहेगा
काँटों पर भी फूल खिलते रहेंगे मुरझाने तलक
या फिर कभी मन टूटे
मुरझाई कलियों की तरह
तो किसी सुबह
दिन बीत जाने देना निर्लिप्त ..
किसी अगली सुबह आने तक
मन दो बने रहने देना!
४.मेरे बाद की तुम
मेरे जाने के बाद
तुम लौट आना!
एक ओर करवट कर सो जाना।
या
मेरे जाने के बाद
एक ओर करवट कर लेट जाना
फिर करवट बदल कर
दूसरी ओर गली के अंधेरे को देखना-सुनना
फिर दूसरी ओर मुंह पलट लेना।
मेरे जाने के बाद,
बुके के सूखे फूल पंखुड़ियों को
बिन/चुन
किताब के इकहत्तरवें/बहत्तरवें पेज बीच छिपा देना
अगली पढ़न में
बाकी कहानी ढूंढने में सरलता हो जिससे।
फिर बत्ती बुझा
एक ओर करवट कर शून्य कर देना सब कुछ.
५.निर्वासित
मेरे घर में एक मैं रहता हूँ
एक घडी की टिक टिक
कुछ जूते
कुछ किताबें
तीन ट्रेवेलिंग बैग
एक उदास गहरी खामोश चुप्पी
मैं, मेरे घर में निर्वासित सा रहता हूँ.
इस ट्रेन के एक बड़े खाली बोगी से घर में
एक मैं रहता हूँ
एक घडी की टिक टिक
हमें अब एक दूसरे की आदत पड़ गयी है.
०००
एक और साथी की पाँच कविताएँ पोस्ट कर रहा हूँ और उन पर टिप्पणी भी....आप बेबाकी से
किन्तु शालीनता से अपनी बात रखे...कविता
और टिप्पणी दोनों की खामियों को उजागर करे
और अच्छी लगे तो वह भी कहे...आप टिप्पणी अपने मन माफिक करने के लिए स्वतंत्र है...इस पोस्ट के बीच दूसरी पोस्ट न डाले...
कविताएँ
१.निराशा
निराशा,
नहीं है आशा का नहीं होना,
यह तो आशा का होना ही है
जब आशा की मांग और पुरज़ोर हो जाया करती है
जैसे प्रेमिका का नहीं होना प्रेमिका का नहीं होना नहीं है,
बस प्रेमिका के होने की घनीभूत मांग है एक,
निराशा है मोमबत्ती एक अंधेरी रात की
धीरे धीरे जलती पिघलती है,
बिजली आने के इंतजार में जैसे/
अक्सर होता है
बत्ती खत्म होने से ठीक पहले आती है बिजली,
पूरी कालोनी, कालोनी जगमगाने से पहले ही खुश हो जाती है
उजाला होना तो दूसरा चरण है
बाद का चरण है
बिजली आने के बाद का
बत्ती के जल जाने से पहले का,
सुकून है निराशा असल में
ठंडापन है दिल का,
बत्ती बुझने से पहले का प्रयास है
अंधेरे में रह नहीं सकते हम
तभी
अगर बत्ती खत्म हो, बिजली आने से पहले कभी किसी रात
एक और जला लेते हैं मोमबत्ती
फिर मोम पिघलता है
शनैः शनैः
बिजली आने के इंतजार में.
२. तीसरे पहर का सपना
रात के तीसरे पहर
जब किसी अन्तःपुर में नृत्य क्र रही होती हैं मत्स्यपरियां
और जब अधजगे स्वप्न तोड़ देते हैं गहरी नींद की श्रृंखला
संगीत की उतान धुन
धीरे से उतर जाती है स्वर लहरी पर
ठण्ड से काँप जाता है पूरा शहर
रात के ठीक उसी पहर उतरते हैं देवदूत
अधजगी नींद तोड़
खटका देते हैं दरवाज़े के सांकल
(न जाने क्या लेने आये हों!)
चौंककर वह उठ बैठता है-
उसे अपनी नहीं
दूसरों की मृत्यु का भय है!
३. दो
मन के दो हिस्सों में से
एक पर रख दो
नरम पूजा के फूल
तरतीब से सजा दो उन्हें
दूसरे पर बचा हुआ हिस्सा
गाढ़ा, काला-नीला
कांटेदार दर्दनाक
चीखता हुआ हिस्सा
फिर मन के इन दो हिस्सों को
अदल बदल दो
या जरा सा इसमें
और जरा सा उसमें मिश्रण कर दो
जैसे एक हाथ में रखे चावल के दाने उठा कर रख देते हैं
दूसरे हाथ में रखे चावल के दानों के साथ
मन, तब मन-सा बना रहेगा
काँटों पर भी फूल खिलते रहेंगे मुरझाने तलक
या फिर कभी मन टूटे
मुरझाई कलियों की तरह
तो किसी सुबह
दिन बीत जाने देना निर्लिप्त ..
किसी अगली सुबह आने तक
मन दो बने रहने देना!
४.मेरे बाद की तुम
मेरे जाने के बाद
तुम लौट आना!
एक ओर करवट कर सो जाना।
या
मेरे जाने के बाद
एक ओर करवट कर लेट जाना
फिर करवट बदल कर
दूसरी ओर गली के अंधेरे को देखना-सुनना
फिर दूसरी ओर मुंह पलट लेना।
मेरे जाने के बाद,
बुके के सूखे फूल पंखुड़ियों को
बिन/चुन
किताब के इकहत्तरवें/बहत्तरवें पेज बीच छिपा देना
अगली पढ़न में
बाकी कहानी ढूंढने में सरलता हो जिससे।
फिर बत्ती बुझा
एक ओर करवट कर शून्य कर देना सब कुछ.
५.निर्वासित
मेरे घर में एक मैं रहता हूँ
एक घडी की टिक टिक
कुछ जूते
कुछ किताबें
तीन ट्रेवेलिंग बैग
एक उदास गहरी खामोश चुप्पी
मैं, मेरे घर में निर्वासित सा रहता हूँ.
इस ट्रेन के एक बड़े खाली बोगी से घर में
एक मैं रहता हूँ
एक घडी की टिक टिक
हमें अब एक दूसरे की आदत पड़ गयी है.
०००
टिप्पणी
निराशा,
तीसरे पहर का सपना ,दो,मेरे बाद की तुम,निर्वासित ये पांच कविताएँ मुझे प्राप्त हुई .इन्हें पढकर जो विचार मेरे मन मस्तिष्क में उभरे उन्हें ही लिख दिया है .....
1- निराशा-
ये कविता निराशा में डूबे मनुष्य को शक्ति और उर्जा प्रदान करती है.इस आपा-धापी भरे समय मेंजिस तरह से लोग भोतिक सुख के लिये लालायित हैं और छोटी-छोटी बातों में दूसरों से प्रतिस्पर्धा करते हुए निराशा की गर्त में गिरते जा रहें हैं वहीँ से उन्हें उबार लेने का एक सफल प्रयास है ये कविता. मन के भीतर निराशा भर गई है, ये महसूस कर लेना भी व्यक्ति के लिए कम कष्टदायक नहीं होता है | निराश व्यक्ति अधिक थका तथा कमजोर हुआ -सा मह्सूस करता है | ऐसे में यदि उसे ये एहसास दिला दिया जाये कि -नही तुम निराशा में नहीं हो ,तुम्हारी ये स्थिति तो "आशा का होना है "तो निश्चित तोर पर वह नये सिरे से उठखड़ा होगा | 'निराशा है मोमबत्ती एक अँधेरी रात की ' व 'सुकून है निराशा असल मे' जैसी पंक्तियाँ शिल्प और संवेदना दोनों स्तर पर कविता को ऊँचाई प्रदान करती हैं |निराशा की तुलना रात भर जलती हुई मोमबत्ती से करके कवि ने एक सुंदर बिम्ब प्रस्तुत किया है |एक अँधेरा हटता है तो नया स्वप्न जन्म लेता है | एक निराशा से मुक्ति मिलती है तो नई आशा और विश्वास का उदय होता है |.....यही तो है जिन्दगी |
2..तीसरे पहर का सपना -
इस कविता में कवि ने निर्मम समय की मार से भयभीत व्यक्ति की मन:स्थित का जिक्र किया है जो नीद में भी घबराकर बैठ जाता है | वर्तमान समय में देश भयावह स्थिति में है | प्रशासनपूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है | आतंकवाद ,नक्सलवाद
का साम्राज्य फैला है |इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप व्यक्ति के अचेतन मन के भीतर दबा डर उस समय उभर कर सामने आ जाता है जब वह रंगीन सपनों में अर्थात ख़ुशी में डूबा होता है | ये ख़ुशी पर भय की जीत है | आज का इंसान कमोवेश इसी भय की मन:स्थिति में अपना जीवन बिता रहा है |
3- दो -
इंसान का मन बड़ा विचित्र होता है परिस्थितियाँ उसे आहत अथवा प्रफुल्लित करती रहती है | अपनी इस कविता में कवि ने मन को मन बनाये रखने का कारगर उपाय सुझाया है| कविता में नरम पूजा के फूल एवं कांटेदार हिस्सों से तात्पर्य अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों से है | कवि दोनों परिस्थितियों में पड़ने वाले प्रभाव को मिला देने की बात कहता है | ऐसे मे दुख सुख में तथा सुख दुःख में मिल जायेगा और दुःख की मारक छमता कम हो जायेगी | किसी विपरीत परिस्थिति से उबरने के लिये निर्लिप्त होकर उस समय के गुजर जाने का इंतजार करना भी एक सार्थक पहल है |कवि ने इस कविता में एक ओर मन को पकड़ने का सृजनात्मक प्रयास किया है तो दूसरी ओर उसे साध ले जाने की उक्ति भी सुझाई है |
4- मेरे बाद की तुम -
ये कविता अपने शुरुआती दोर में कुछ भटक -सी गई है तथा सपाट बयानी से ग्रस्त होकर अनुभूति से अछूती रह गई है |कविता के उत्तरार्ध में सूखी फूल पंखुड़ियों को किताब के बीच छिपा देने का भाव संबंधो को आगे बनाये रखने की कोशिश है | यहाँ कवि कुछ बिम्ब जरुर गढ़ता है और मन की बारीक़ बुनावट से साक्छात्कार कराने का प्रयास भी करता है |किन्तु अगली ही पंक्ति में 'शून्य कर देना सब कुछ ' से कवि का क्या आशय है ये स्पष्ट नही होता |
5-निर्वासित -
अंतिम कविता निर्वासित बड़ी मार्मिक है तथा आज के सामाजिक यथार्थ की बिडम्बना को उजागर करती है | शिक्छा और नोकरी के कारण बच्चों से दूरी ,सभ्यता और प्रगति के नाम पर अडोस-पड़ोस से दूरी,इतना ही नहीं , दूरदर्शन,फेसबुक,व्हाट्सएप ने इंसान को भरे -पुरे घर में भी एकाकी बना दिया है |फेसबुक पर हजारों मित्रों से मित्रता निभाने में व्यस्त हम अपने ही घर के अपने लोगों से बात करने का समय नहीं निकाल पाते हैं| ऐसे में घड़ी की टिकटिक मन के सूने एकांत में संगीत -सी झरने लगे तो आश्चर्य कैसा ? इस कविता में हाशियेपर पहुंच चुकी संवेदना को गहरी अकुलाहट के साथ निर्जीव वस्तुओं से जोड़कर पकड़ने का प्रयास किया गया है |
पांचों कविताएँ रचनात्मक सम्भावना लिये हुए आगे बढ़ रही हैं |किन्तु अनुभूति को और गहरी तथा भाषा को धारदार बनना अभी बाकी है|
15.01.2015
आपका साथी
सत्यनारायण पटेल
2 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 10 नवम्बर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
वाह समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ अच्छी रचनाऐं पढवाने के लिये सादर आभार ।
काश अच्छा लिखने की चाह रखने वालों को अच्छे समालोचक मिले तो उनकी रचनाओं का परिमार्जन हो उच्च ता को प्राप्त हो नये कवि ।
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